Editor : Dr. Rahul Ranjan (+91-6263403320)
ज्ब नई बहू घर में आती है तो उसकी आव भगत बहुत होती है उसे नाजों से रखा जाता है और उसके नखरे मानों प्रसाद हो, ऐसे ग्रहण किया जाता है। गुजरते वक्त के साथ ये बहुएं मायके से आकर ससुराल के रीति रिवाजों को समझती और एडजस्ट करने का प्रयास करती हैं, सभी एडजस्ट हो जाएं यह संभव नहीं है। या तो ससुरालियों को बहू के तौर तरीको को एडजस्ट करना पडता है या फिर बहू अपने मायके के रीत रिवाजों को दरकिनार कर अच्छी बहू बन जाती है। दोनो ही सूरतों में एडजस्ट शब्द कामन है। अभी अभी कुछ अंतराल पहले कांग्रेस के घर से दो दर्जन बहुएं भाजपा के आंगन में आई हैं गृह प्रवेश के साथ ही मायके की यादें हिलोरे मारने लगी हैं कुछ सगे संबंधी भी मायके में हैं जिनका इनके बिना दिल नहीं लगा रहा सो वह भी उनके पीछे चल दिए अब नई मुश्किल ससुराल वालों के सामने आ खड़ी हुई है कि बहू के साथ उनके कुनबे को कैसे एडजस्ट करें। यदि कुनबे को तवज्जो नहीं दी गई तो बहुएं गृह कलेश को जन्म देंगी और भाजपा के अनुशासित कुटुम्बजन लोक लाज के भय से बाहर निकल कर रो भी नहीे पायेंगे। अपने परिवार को मजबूत करने के लिए जिस तरीके से इन बहुओं को लाया गया है उससे तो बहुएं ससुराल पर भारी पड़ने वाली हैं। अभी हालात यह हैं कि जिस सामाजिक दूरी को बनाने का जोर दिया जा रहा है वहीं इन बहुओं के लिए जगह जगह जनवासे सजाए जा रहे हैं और आत्मीय सत्कार के साथ इन पर कुंकुम चंदन का टीका लगाकर पुष्प वर्षा की जा रही है। सत्ता के मुखिया इनके लिए पलक बिछाए हुए है। अभी मजबूरी है इन बहुओं की हर बात को मानना। और कुटुम्ब जानता है कि इनको किस तरह से ससुराल के तौर तरीके सिखाना है पर बहुएं यह जानकर भी अनजान हैं कि आने वाले दिनों में उनकी गत क्या होगी। समधी तो गले मिल लेंगे और जीवन भर साथ निभा लेंगे लेकिन ये जो आईं हैं इनके भविष्य के बारें में अभी पचांग में कुछ भी दृष्टिगोचर नहीं हो रहा। राजनीतिक ज्योतिषियों ने इनके विवाह के समय की काल गणना में अवसर के नक्षत्रों को देखा और इसी आधार पर कहा कि आने वाले तीन साल भारी है कोई मुहुर्त नहीं है इसलिए अभी ब्याह हो जाए तो उचित होगा। सामूहिक विवाह का आयोजन हुआ और पंडित ने एक साथ मंत्र पढ़कर भांवरें करवा दीं। देष में कोरोना फैल गया और भाजपा को मौका मिल गया इन कांग्रेसी बहुओं को समझने का। इतने समय में कुछेक के सुर बदले हैं और कुछेक तो अभी भी मायके की याद में छुपकर रो रही हैं। क्योंकि उन्हें आभास होने लगा है कि गलती तो हो गई है और अब सुधारी नहीं जा सकती। कैसे भी रो धोकर मायके में सुकून की दो रोटी खा रहे थे और डाट डपट भी अपने ही सगे संबंधी थे पर यहां तो पता ही नहीं चल रहा कौन से कैसा रिष्ता रखना है। यहां तो बैठक में बहू को घूंघट डालकर सबके पैर दाबना है वह चेहरे देख ही नहीं सकती और यदि ऐसा दुष्साहस किया है तो न घर की बचेगी न घाट की। मायके से तो वही चुपचाप भागकर मंडप में बैठी थी सो अब चुनाव की आस में दिन काट रही है। मुंह तो फिर मायके वालों को ही दिखाना है यदि माफी मिल गई तो समझो अच्छे दिन आ गए वरना किसी कोन्टे में बैठकर सिसकना नियति बन जायेगी। कोरोना के कारण ये बहुएं प्लेटपफार्म पर ही खड़ी रह गईं ससुराल पहुंच ही नहीं पाईं अब ऐसा लग रहा है कि मुंह दिखाई की रश्म यहीं पूरी कर पगफेरा करना होगा फिर मतदान के बाद यदि संक्रमित नहीं हुईं तो ढ़ोल बजाकर धूमधाम से ले आयेंगे। अभी तो यह देखकर हंसी रूक भी नहीं रही और तरस भी आ रहा है कि दूल्हे ने बहू के मुंह में रसगुल्ला तो रख दिया पर वह उसे निगल ही नहीे पा रही।