Editor : Dr. Rahul Ranjan (+91-6263403320)
वर्तमान स्थिति में देश किस ओर चला जा रहा है यह कहना अत्यधिक मुश्किल है देश के विकास को लेकर हर राजनीतिक पार्टियां कई बड़े-बड़े वादे करती हैं लेकिन इन वादों का कोई लाभ देश को नहीं मिला वे विकास के नाम पर झूठ का पुल बांध देती है पर वर्तमान स्थिति में देश की धरातल सच्चाई कुछ और बयान करती नजर आ रही है इस देश की अर्थव्यवस्था की व्यवस्था खत्म होती है नजर आ रही है कहते हैं किसी देश की अर्थव्यवस्था उन्नत करना है तो उस अर्थव्यवस्था में कार्य करने वाले श्रमिकों को सुचारू रूप में व्यवस्थित करना होगा पर मौजूदा स्थिति में श्रमिक या मजदूर आज एक स्थान से दूसरे स्थान पलायन करते नजर आ रहे हैं जो कि इस देश और राज्य के सत्ताधारी सरकारों के लिए चिंता का विषय बनता जा रहा है क्योंकि राज्यों से मजदूरों का पलायन की स्थिति देखें तो वह यह है कि भारतीय जनगणना 2011 के अनुसार देश में वर्ष 2011 तक 45 .36 करोड़ लोग हैं जिन्होंने काम की तलाश में पलायन किया है इसमें 68% ऐसे लोग शामिल थे जिन्होंने काम के लिए गांव से शहर में पलायन किया लाखों प्रयास के बावजूद आदिवासियों का पलायन निरंतर जारी है पलायन करने वाले मजदूरों में बिहार राज्य के मजदूर सबसे आगे हैं बिहार के बाहर काम की तलाश में मजदूरों के पलायन का एक लंबा इतिहास रहा है पश्चिम विहार के लड़ाका जाति के लोग मुगल सेना में भर्ती किया जाता था और यह परंपरा ईस्ट इंडिया कंपनी ने भी जारी रखा बंगाल के मिलो आसाम के चाय के बागानों में साठ के दशक में पंजाब और हरियाणा हरित क्रांति 90 के दशक में महाराष्ट्र गुजरात कर्नाटक और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र भी रायता वाले ने औद्योगिक ग्रंथ के रूप में उभर कर सामने आए आए एच डी के अध्ययन के अनुसार 7 जिलों में जहां अध्ययन हुआ 58% परिवार ऐसे हैं जहां से कम से कम एक व्यक्ति प्रवासी पर है इस तरह की स्थिति एक बिहार राज्य में नहीं भारत के कई अन्य राज्य में भी है केंद्रीय राज्य सरकार द्वारा चलाए गए कोई भी योजना व महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना मनरेगा योजना इत्यादि कोई भी योजना उसका असर दिखता नहीं नजर आ रहा है आज हर उन राज्यों के सत्ताधारी सरकारों के सामने में यह प्रश्न खड़ा है कि वह अपने राज्य के मजदूरों का पलायन किस तरह विराम लगाए एवं राज्य की अर्थव्यवस्था को सुधारनें को लेकर ठोस कदम उठाएं ना कि वह अपनी राजनीतिक रोटियां सेकने में लगी रहे