Editor : Dr. Rahul Ranjan (+91-6263403320)
भारत के लोगों के मन में कोविड 19 का ऐसा डर बिठा दिया गया है कि उसकी सोचने समझने की षक्ति पूरी तरह समाप्त हो गई है पूरे देष के मीडिया ने इस संक्रमण को आंख बंद कर जिस तरह से सुनी सुनाई और तथाकथित सुझाई गई बातों को दिखा और सुना कर भ्रमित किया है उसके पीछे क्या कुछ हुआ और चल रहा है इसकी तह तक जाने की कोषिष नहीे की गई। मीडिया इस मामले में कटघरे में खडा है क्योंकि वह सरकार की चाकरी कर रहा है। कुछ लोगों को यह सच्चाई चुभ सकती है सरकारों को भी और राजनीति करने वालों को भी। इस समय देष को कोराना से कही अधिक राजनीति ने संक्रमित कर दिया है लोगों को उनके जीवन का भय दिखाकर घरों में कैद कर दिया गया है यह लाकडाउन नहीं बल्कि नजरबंदी जैसा है। इस दौरान हम वही देख सुन रहे हैं जो टीवी और अखबारों के माध्यम से सामने आ रहा है। सरकारों ने मीडिया के हाथ पैर बांध दिए हैं वह सच्चाई को दिखाने के बजाय छिपाने में अधिक भरोसा कर रहा है। क्योंकि मीडिया स्वयं वेन्टीलेटर पर है उसकी जरा सी भी कोताही उसे षवदाह गृह पहंुचा देगी। अब राजनेता देष को बचाने को दिखावा कर रहे हैं वह कोरोना की आड में अपना भविष्य सुरक्षित कर रहे हैं। कोराना संक्रमण से बचाव को लेकर जो कदम केंद्र सरकार ने उठाए थे वह बेकार साबित हुए और इसके बाद पीडितों की मदद के लिए जो वादे किए गए वह झूठे निकले। संकट के दौर में चीन विवाद को ऐसा दिखाया गया जैसे मानों देष के हर घर में चीनी बंदूक लेकर घुस आया हो। भूख , प्यास से बेहाल देषवासियों की चिंता करने के बजाय सरकार ऐसा भय दिखा रही है जिससे कि उसके विरू़द्ध उठने वाली आवाजें दम तोड दें। अपनी असफलताओं को छिपाने के लिए रोज रोज नए नए हथकंडे अपनाए जा रहे हैं। दो दिन लाकडाउन यानि सप्ताह के दो दिन कोरोना की छुट्टी। लाकडाउन और अनलाक तो ऐसे किया जा रहा है जैसे कि कोरोना से प्रधानमं.त्री और मुख्यमंत्रियों की वीडियो कानफेन्सिंग हो रही हो। राजनीति के मुंह पर न मास्क है और न ही उसके हाथ सेनेटाइज। कुलजमा यह है कि देष की राजनीति संक्रमित हो चली है और इसका नुकसान अभी धंुधला दिखाई दे रहा है आने वाले महीनों में इस संक्रमण के लक्षण पूरे देषभर में दिखाई देने लगेंगे। राजनीतिक महत्वाकांक्षा का जो खेल कोरोना को अस्त्र बनाकर खेला जा रहा है वह उतना ही भारी पडेगा जैसा कि महाभारत की समाप्ति के हुआ था। और जैसा कि देष की आजादी के बाद देखने को मिला था। भुखमरी, बेरोजगारी, बीमारी के ऐसे भयंकर दृष्य तांडव करने को तैयार हो रहे हैं जो कल्पना से परे हैं। पर किसे चिंता है इस ओर सोचने की, मास्क और सेनेटाइजर से फुर्सत तो मिले। मास्क ने बोलने की ताकत छीन ली और सेनेटाइजर ने हाथों को षक्तिहीन कर दिया है। यह पूरा खेल बीमारी से बचाव के लिए नहीे बल्कि इसकी आड में राजनीति का गंदा खेल खेलने के लिए किया जा रहा है। ठंडे दिमाग से सोचे लाक डाउन के नाम पर पूरे देष की कमर को तोड देना उचित है! क्या पूरे लाक डाउन में देष में राजनीतिक गतिविधियां बंद रहीं। सरकारें गिरी और गिराई गई हैं। दिल्ली से लेकर हर प्रदेष की राजधानी तक राजनीति करने वाले सक्रिय रहे। मध्यप्रदेष मे तो इसी दौर में राजनीति परवान चढी यहां सरकार गिरी और नई बनी फिर चुनाव जीते बगैर मंत्री बने। लोकतंत्र और जनादेष की धज्जियां उडी। कोई उफ तक नहीं बोला। राजस्थान में राजनीतिक नौटंकी चल ही रही है यहां कोरोना राजनीति से डरा सहमा हुआ है। तमाम काम धंधे बंद हैं पर राजनीति का धंधा खुल्ला चल रहा है। मं़त्री, विधायक से लेकर मुख्यमं़त्री तक कोरोना पाजिटिव होकर अस्पताल में भर्ती होकर आराम फरमा रहे हैं और यहीं से सत्ता चल रही है। कोरोना वायरस भी कितना दोगला है नेताओं को तो दो तीन दिन में ही छोड देता है लेकिन आम आदमी को चिपक जाए तो चैदह दिन का वनवास। लाकडाउन और अनलाक ये दो ऐसे षब्द हिन्दी षब्दकोष में अपना दबदबा बनाने में कामयाब हो गए। और इन्हीं दो षब्दों ने राजनीति को नई दिषा दे दी। पहले बंद कमरे की राजनीति हुआ करती थी और अब बंद देष की राजनीति।